पास-पास है, फिर भी जुदा-जुदा


दिनेश बोथरा
भाई जैसा सैण नहीं, भाई जैसा बैर नहीं। वैज्ञानिकों को यह कहावत कैर की झाड़ियों पर खरी उतरती नजर आई है। फर्क सिर्फ इतना है कि कैर में सैण कम बैर यादा है यानी पास-पास रहते हुए भी उनके गुणधर्म एक-दूसरे से दूर-दूर तक मेल नहीं खाते। वानस्पतिक दुनिया में कैर की यह फितरत अजूबी है। आपको भी यह देखकर हैरानी होगी कि एक झाड़ी में यदि साावन का उन्माद होता है तो पास की दूसरी झाड़ी में पतझड़ की खिंजा झलकती मिलती है। विविधता का यह आलम इसके कई गुणों में देखा गया है, जो बहुत यादा करीब 70 प्रतिशत तक है। जेनेटिक इम्प्रूवमेंट ऑफ इकोनोमिकली इम्पोटर्ेंट स्कर्ब ऑफ एरिड रिजन प्रोजेक्ट पर काम कर रहे केंद्रीय रुक्ष क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, राजस्थान कृषि यूनिवर्सिटी बीकानेर तथा गुजरात कृषि यूनिवर्सिटी बनासकांठा के वैज्ञानिकों ने कैर के विभिन्न पौधों पर पिछले कई सालों तक वॉच किया और पाया कि इस पौधे में अपनी ही बिरादरी के साथ व्यवहार करने का रिवाज बहुत कम है। वर्ल्ड बैंक से वित्त पोषित नेशनल एग्रिकल्चर टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट के अधीन इस अध्ययन का समन्वय कर रहे काजरी के डा. मंजीतसिंह कहते हैं-इस प्रोजेक्ट का मकसद गुगल, कैर, मेहंदी तथा सोनामुखी की झाड़ियों का संवर्धन करना है। कृषि क्रांति ने बहुपयोगी झाड़ियों के वजूद को खतरा पैदा कर दिया है। सबसे यादा नुकसान टे्रक्टरों ने पहुंचाया है। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि इसकी बेहतर किस्म को बचाने और फैलाने का काम किया जाए। कैर पर विस्तृत अध्ययन इसी के तहत किया गया है। वैज्ञानिकों ने राजस्थान तथा हरियाणा के रुक्ष क्षेत्रों में पाए जाने वाले कैर की झाड़ियों का सघन सर्वे किया, जिसके नतीजों में यह उभरा कि कैर में परस्पर विविधता पाई जाती है। इसकी प्रजनन बायोलॉजी भी चौंकाने वाली थी। शायद लगातार अकाल के हालात में खुद के अस्तित्व को बचान के लिए झाड़ियों को तमाम रास्ते अख्तियार करने पड़े हों। इसका प्रजनन रूट, सूकर्स, बीज, कलम आदि सभी विधियों से होता है। जैसा कि डा. सिंह बताते हैं-यह इसको फैलाने में सबसे बड़ा मददगार साबित होगा। इसकी उपयोगिता को समझते हुए खेती करने में फायदे हैं। कम से कम खेतों की बायो फैंस बनाने में इसको तरजीद दी जानी चाहिए। वैज्ञानिकों का कहना है कि अलग-अलग झाड़ियों में एक ही साल में पत्ते, फूल तथा फल आने का समय भिन्न होता है। ताजुब नहीं कि एक ही पौधे में अलग-अलग सालों में यह चक्र बदल जाता है। आमतौर पर कैर में जनवरी से मार्च, मई से जुलाई तथा अक्टूबर में पत्ते, फरवरी से मार्च, मई-जून, अक्टूबर-नवंबर में फूल तथा मार्च-अप्रैल, जून तथा नवंबर में फल आते हैं, लेकिन ये झाड़ियां आबोहवा और पारिस्थितिकी के अनुरूप अपना यह चक्र बदलती रहती है। हैरानी तो तब होती जब आस-पास की झाड़ियों का चेहर अलग=अलग नजर आता है। इसको करीब से देखने पर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कैर की गुदा का वजन, फलों से संबंधित अन्य गुणों तथा बीज के वजन में 49 से 70 प्रतिशत तक विविधिता पाई जाती है, जबकि लंबाई, झाड़ियों में बिखराव में यह विविधता 43 48 प्रतिशत तथा फल की साइज, लंबाई व सौ बीजों के वजन में यह 20 से 26 प्रतिशत तक होती है।

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