उम्मीदों का उजाला

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आप इसे अच्छी खबर कह सकते हैं। क्लीन-एनर्जी के लिए मशक्कत मे जुटे दुनिया भर के वैज्ञानिकों को थार में सूरज का ताप सुहाना लगने लगा है। मरुधरा के बाशिंदों को कल तक मथानिया में विश्व का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट नहीं लग पाने मलाल था, लेकिन अब उम्मीदों का उजाला चहूंओर फैल गया है। सूरज के ताप से बिजली पैदा करने की होड़ मच गई है। सही मायने में यह श्रेय जाता है केंद्रीय रुक्ष क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों को, जो आज से नहीं सालों से यह दावा करते आ रहे हैं कि थार मरुस्थल सोलर पावर की खान है। कई नामचीन कंपनियों को सोलर पावर प्लांट लगाने के लिए मरुधरा में दस्तक देना इन्हीं दावों का समर्थन करता है। वैज्ञानिक एनएम नाहर की मानें तो देश के शुष्क क्षेत्र का महज एक प्रतिशत हिस्सा हमें ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बना सकता है। देश का तीन लाख बीस हजार वर्ग किमी क्षेत्र शुष्क है, जिनमें 69 प्रतिशत राजस्थान में, 21 प्रतिशत गुजरात तथा शेष दस प्रतिशत पंजाब और हरियाणा में पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दो हैक्टेयर क्षेत्र में एक मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। इस लिहाज से यदि समूचे शुष्क क्षेत्र के महज एक प्रतिशत का उपयोग किया जाए तो 1 लाख 60 हजार मेगावाट बिजली पैदा हो सकती है। यह बिजली हमारे मौजूदा उत्पादन से यादा है। शुष्क क्षेत्रों में भी खासकर, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर पर विशेषज्ञों की निगाहें जमी हैं। वजह है यहां सोलर पावर की सर्वाधिक उपलब्धता। इन क्षेत्रों में औसतन बीस से पच्चीस दिन तक ही बारिश होती है। ऐसे में सूरज देवता साल में सर्वाधिक दिनों तक दर्शन देते हैं। नतीजतन, जोधपुर जिले में 6 किलो वाट्स घंटा प्रति वर्गमीटर सोलर पावर आसानी से मिल जाता है। बीकानेर में यह आंकड़ा 6.3, जैसलमेर में 6.4, बाड़मेर में 6.3, हनुमानगढ़ में 5.5, गुजरात में 5.9 तथा हरियाणा में 5.6 किलो वाट्स घंटा प्रति वर्गमीटर है। शायद यही वजह है कि क्लिंटन फाउंडेशन को सोलर पार्क के लिए यह धरती जोधपुर खींच लाई है।