अब नजर नहीं आता इंडियन कैमेलियन

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दिनेश बोथरा
जीव-जंतुओं की बिरादरी पर आई शामत का यह चौंकाने वाला उदाहरण है। देश में लुप्त प्राय: होने के कगार पर पहुंच चुके इंडियन कैमेलियन गिरगिट की खूबियां ही उसकी जान की दुश्मन बनी हुई हैं। सर्चलाइट सरीखी आंखों पर टोपीनुमा सर से सहज आकर्षण के बीच जहरिले होने की आशंका से ग्रामीण इसका वजूद मिटाने पर तुले हुए हैं। राजस्थान के शुष्क इलाकों में बहुत कम नजर आने वाले इंडियन कैमेलियन को देखते ही देखते कुछ अरसे पहले देसूरी के ग्रामीणों ने जहरीला समझ कर मार दिया था। विचित्र काया से लोगों का ध्यान एकाएक उसकी तरफ गया और लोग उस पर पिल पड़े। यह अकेला मामला नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में अमूमन खेत में नजर आने के कारण यह नादानी का शिकार बनता आया है। जैसा कि प्राणि सर्वेक्षण विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डा. एनएस राठौड़ कहते हैं-इंडियन कैमेलियन मध्य व दक्षिण के रायों सहित समूचे गुजरात में पाया जाता है, लेकिन इसे राजस्थान में सबसे पहले 1998 में जोधपुर की भोपालगढ़ तहसील में रिपोर्ट किया गया था। चूंकि शुष्क क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति वैसे भी बहुत कम है, ऐसे में अज्ञानतावश मारे जाने की घटनाएं चिंता पैदा करती हैं। आमतौर पर गांवों में लोग इसे गिर्रडा के नाम से जानते हैं, क्योंकि इसके चलने की रफ्तार बहुत कम है। इसके न दौड़ पाने की एक खास वजह है, वह यह कि इसके हाथ व पांच की अंगुलियां जुड़ी हुई हैं। दिलचस्प यह है कि इसी कारण गांवों में लोग आज भी धीमे चलने वाले को गिर्रडा जैसे चलने का उलाहना देने से नहीं चूकते। प्राणि वैज्ञानिकों के अनुसार इंडियन कैमेलियन के शरीर पर पीले धब्बेनुमा हरा रंग तथा बड़ी-बड़ी सर्चलाइट नुमा आंखें होती हैं, जो चारों दिशाओं में घुमाई जा सकती है। शारीरिक विचित्रताआें से भरे इस जीव के जीभ की लंबाई 4 से 5 इंच तक होती है, जो जरूरत पड़ने पर और बड़ी हो सकती है। यह मुख गुहा में स्प्रिंग की तरह गोल बनाकर रखी जाती है। अग्रभाग कूपनुमा होने के साथ जीभ पर लिलिसा पदार्थ लगा रहता है, जो कीट-पंतंगे पकड़ने के लिए मददगार रहता है। राठौड़ कहते हैं- चुटकी में रंग बदलने की क्षमता रखने वाले इंडियन कैमेलियन की पूंछ भी उतनी ही लंबी होती है, जो स्प्रिंग की तरह गोल रहती है। इसकी मदद से यह टहनियां पकड़कर लटकते हुए चलता-फिरता है। इस लिहाज से इसके शरीर व पूंछ की लंबाई कभी-कभी 14 से 16 इंच तक पहुंच जाती है। उन्होंने कहा, इसके मुंह में न तो विष ग्रंथियां होती हैं और न ही इसमें अंशमात्र जहर होता है। कीट-पतंगे भक्षण के कारण यह किसानों का मित्र है। प्राणि वैज्ञानिक चिंतित है कि यदि इसी तरह नासमझी में हम जीव-जंतुओं का शिकार करते रहे तो एक दिन इनका वजूद मिट जाएगा।