लूणी नदी के वजूद पर संकट

पश्चिमी राजस्थान की प्रमुख बरसाती नदी लूणी का वजूद संकट में है। नदी का कैचमेंट एरिया अतिक्रमणों और सिंचाई के लिए छोटे-छोटे बांधों के निर्माण से सिमट गया है। जोधपुर में इसकी सहायक नदी जोजरी तो बालोतरा में लूणी नदी का बेसिन रंगाई-छपाई फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित पानी की चपेट में बर्बाद हो गया है। जल अवरोधों के चलते 530 किमी लंबी इस नदी में बारिश का पानी आखिरी छोर तक पहुंच ही नहीं पा रहा। अजमेर जिले से शुरू होने वाली यह नदी बाड़मेर जिले के गांधव से होते हुए गुजरात के कच्छ-रण में समाप्त होती है। मूल रूप से लूणी नदी का प्रवाह क्षेत्र 37 हजार 363 वर्ग किमी हुआ करता था, जो काफी हद तक सिमट गया है। सुकड़ी, मीठड़ी, खारी, बांडी, जवाई, तथा जोजरी जैसी इसकी सहायक नदियां भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं। पाली शहर के निकट बांडी नदी भी औद्योगिक प्रदूषण की गिरफ्त में है। बरसाती नदियां होने के कारण इनका बेसिन साल भर सूखा रहता है। ऐसे में बारिश में जल की आवक होने से प्रदूषित बेसिन का दायरा बढ़ जाता है। बारिश का पानी भी रसायनयुक्त होकर नदी के दोनों ओर की वनस्पति को नष्ट कर रहा है। नदी किनारे के कुओं का पानी भी पीने योग्य नहीं रहा है।

प्रमुख बांध जसवंतसागर का कैचमेंट प्रभावित: लूणी नदी के बहाव क्षेत्र में सबसे बड़े बांध जसवंतसागर का तीन दशक पहले तक कैचमेंट एरिया 3, 367 वर्ग किमी हुआ करता था, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप और अन्य स्ट्रक्चरों का निर्माण होने से इसकी भंडारण और स्थिर भराव क्षमता में जबर्दस्त कमी आई है। उद्गम स्थल से बांध के बीच नदी के हिस्से के रूप में मूल कैचमेंट में करीब 62.2 प्रतिशत एरिया में या तो स्मॉल स्ट्रक्चर बन गए हैं या अतिक्रमण हो चुके हैं। नतीजतन, नियमित भराव (फ्रिक्वेंसी ऑफ फिलिंग) में कमी आई है। मूल कैचमेंट 3, 367 वर्ग किमी के मुकाबले इस वक्त केवल 1, 272 वर्ग किमी एरिया ही उपयोगी रह गया है।
बालोतरा में प्रदूषण: कभी बालोतरा क्षेत्र को हरियाली से आच्छादित करने वाली थार क्षेत्र की मरूगंगा लूणी नदी आज जहरीले प्रदूषण की चपेट में है। औद्योगिक नगरी बालोतरा, जसोल व बिठूजा स्थित इकाइयों से निकलने वाले जहरीले पानी ने लूणी की कोख को केमिकलयुक्त जहरीले पानी से लील दिया है। हालांकि फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीट करने के लिए बालोतरा, जसोल व बिठूजा में ट्रीटमेंट प्लांट लगे हैं, मगर ये प्लांट सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। इसके अलावा क्षेत्र में संचालित अवैध धुपाई इकाइयों का पानी भी सीधा लूनी में छोड़ा जा रहा है।
बांझ हुई धरती की कोख: बुजुर्ग ग्रामीण उस जमाने को अभी भूल नहीं पाए हैं, जब उनके कृषि कुएं नदी में पानी की आवक होते ही रिचार्ज हो जाया करते थे। आज स्थिति यह है औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला प्रदूषित पानी तिलवाड़ा पशु मेला स्थल से होते हुए सिणधरी क्षेत्र के गांधव तक पहुंच चुका है। लूणी में वर्षभर पड़े रहने वाले केमिकलयुक्त जहरीले पानी के कारण नदी किनारे आबाद कृषि कुओं आधारित खेत बंजर हो गए हैं। रसातल में पहुंचे जहरीले पानी ने धरती की कोख को बांझ बना दिया है।
अतिक्रमण की भेंट चढ़ी नदी की जमीन: लूणी नदी की जमीन पर जगह-जगह अतिक्रमण हो गए हैं। राजस्व महकमे के स्पष्ट नियम-कायदे होने के बावजूद प्रभावशाली अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही। इतना ही नहीं फैक्ट्रियों में पानी की आपूर्ति पूरी करने के लिए नदी की जमीन में निजी टयूबवैल मालिकों ने पाइप लाइनों का जाल तक बिछा दिया है।

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