भू-विज्ञान का खजाना खतरे में

दिनेश बोथरा
जोधपुर के मेहरानगढ़ के दीदार आप सभी ने किए होंगे, लेकिन शायद ही किसी ने यह गौर किया होगा कि जिस डगर से होकर हम इस ऐतिहासिक किले तक पहुंचते हैं, वह भू-विज्ञान की दुनिया का नायाब तोहफा है। मेहरानगढ़ दुर्ग से नागौरी गेट की ओर उतरने वाले रास्ते के बाएं में फैला है वेल्डेड टफ। वेल्डेड टफ दरअसल जवालामुखी विस्फोट से निकली आगनेय चट्टानों की ऐसी शृंखला है, जिसमें चट्टानें सीधी स्तंभाकार निक्षेप होती गई और एक दूसरे से चिपक गई। कई सदियां गुजर गई और आज यह आलम है कि एक दूसरे से लंबवत जुड़ी चट्टानें दुनिया के लिए एक अजूबा है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इन चट्टानों को संरक्षित घोषित कर चुका है, लेकिन विडंबना है कि कुदरत के इस ओपन म्युजियम के संरक्षण की तमाम कोशिशों का नतीजा सिफर ही रहा है। किला रोड को चौड़ा करने के नाम पर इन संरक्षित इमारतों को बुरी तरह काटा गया। अपने मतलब की रंगाई-पुताई से शहर की ऐतिहासिक दीवारों को बदरंग करने वाले लोगों ने वेल्डेड टफ को भी नहीं छोड़ा। यहां भी जहां-तहां लोगों ने अपने नाम लिखकर इसे बदरंग बना दिया है। जबकि ये चट्टानें साबित करती है कि जोधपुर कभी सक्रिय जवालामुखी का केंद्र था। इस तरह की चट्टानें जोधपुर के अलावा मुंबई के अंधेरी इलाके में भी पाई गई है, लेकिन वे केवल 6.5 करोड़ साल पुरानी है। भूवैज्ञानिकों के पास अब इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि करीब साढ़े 74 करोड़ साल पहले जोधपुर और इसके आस-पास के डेढ़ लाख वर्ग किमी क्षेत्र में जवालामुखी फूट पड़े थे। इसमें पोकरण, मालाणी, पोकरण, सांडेराव, नाडोल तथा रतनगढ़ के क्षेत्र में जवालामुखी विस्फोट से बनी संरचनाएं पसर गई। करोड़ों साल पहले जवालामुखी के मुहानों के रूप में वर्तमान में संतोषी माता का मंदिर तथा जोधपुर-पाली मार्ग पर स्थित कांकाणी का माइनिंग एरिया प्रमुख जवालामुखी केंद्र थे। जवालामुखी के लावा के साथ आग के गोलों की तरह उछलकर निकलने वाली चट्टानों को भूगर्भशास्त्र में वोल्केनिक बम कहा जाता है। तखतसागर की पाल के नीचे तथा सिध्दनाथ की पहाड़ियों की तलहटी में जवालामुखी के उद्गम स्थल से निकलने वाले वोल्केनिक बम बहुतायात से बिखरे हुए हैं। कुछ ऐसे वोल्केनिक बम जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी के भूविज्ञान विभाग के बाहर भी रखवाए गए हैं। ये बम मीलों तक उछल कर गिरे थे। भू-विज्ञान के महत्व के वोल्केनिक बम और वेल्डेड टफ को आज संरक्षण की दरकार है।
जवालामुखी के बाद समुद्र?
आखिर धधकते जवालामुखी की शृंखलाओं का गुस्सा कैसे शांत हुआ? भू-वैज्ञानिक काफी खोज-बीन के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि कालांतर में यह क्षेत्र समुद्री जद में आ गया। जवालामुखी के गर्म तेवर के बाद जोधपुर के आस-पास के क्षेत्र शीतल समुद्र में भी डूबा रहा। यकीन करना मुश्किल हो सकता है, मगर इसके भू-वैज्ञानिक सबूत मौजूद है। किला रोड पर ही जसवंत थड़ा के पश्चिम में सिंगोड़ा की बारी तक फैली हुई है पचास-साठ मीटर ऊंची टेकरी। वैज्ञानिकों का कहना है कि केम्ब्रियन काल में 57 करोड़ साल पहले इस क्षेत्र में समुद्र मौजूद था। इसी काल में आग्नेय चट्टानां के ऊपर अवसादी चट्टानों का निर्माण हुआ। समुद्री जल उतरने के साथ सेडिमेंट्री रॉक्स के रूप में लाल पत्थर की टेकरी पर करीब पंद्रह से बीस मीटर ऊंची टेकरी केप की तरह दिखती है। इसे टेब्लेट ऑन द टॉप के नाम से भी जाना जाता है। भू-विज्ञानी प्रो.बीएस पालीवाल बताते हैं कि जोधपुर के आस-पास के क्षेत्र में फैली भौगीशैल की पहाड़िया कैम्ब्रियन काल में समुद्र की तलहटी में थी। तलहटी में जमा रेत ही सेंडस्टोन की खानों के रूप में मौजूद है। समुद्र की लहरों की वजह से कई तरह की उर्मिका संरचनाएं रिप्पल मार्क सेंडस्टोन की परतों पर मौजूद है। हाल ही यहां सबसे बड़े शैवाल के जीवाश्म खोजे गए हैं। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे जीवन से जुड़े कई रहस्यों से परदा उठेगा।
भूगर्भ की दुनिया के अजूबों से भरे जोधपुर में शिप हाउस की पहाड़ी भी कम महत्व नहीं रखती। निओटेक्निक घटनाओं के तहत आसपास की जमीन में से एक दम उभरी यह पचास से साठ मीटर ऊंची संरचना अपने आप में एक अजूबा है। ऐसी ही संरचना जालोरियों के बास में मौजूद है, जिस पर बाबा रामदेव का मंदिर बना हुआ है। पचेटिया हिल भी इसी तरह की घटनाओं का नतीजा है। दरअसल, भूगर्भीय घटनाओं के आखिर के बदलावों में पहाड़ी और धरातल के बीच फाल्ट आ गया था। इससे पचेटिया पहाड़ी आस-पास की जमीन से एक दम सीधी ऊपर की ओर पचास से सौ मीटर तक उठ गई। यही कारण रहा कि राव जोधा ने सीधी ऊंची पहाड़ी को दुर्ग के निर्माण के लिए चुना। दुर्ग से नागौरी गेट तक के रास्ते को इसी फॉल्ट के सहारे-सहारे बनाया गया। अफसोस की बात यह है कि जोधपुर में भू-गर्भीय और भू-वैज्ञानिक खजाना होने के बावजूद इसे सहेजे रखने की कोई कोशिश नहीं हो रही। भू-वैज्ञानिकों की मानें तो यदि कोशिश की जाए तो जोधपुर देश का सर्वश्रेष्ठ जियो-टूरिम सेंटर बन सकता है। jodhpur

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